आज पूँछ ही लिया उसने कौन हो तुम
पकड़ कर उंगलियां चला था जिसकी ।

छोड़ दी जिसके लिए रोजी- रोटी अपनी
ओ कहते हैं आज सुनूं मैं किस- किसकी।

चूर  थे  जिसको  उठाने  में  हम  कभी
किया चूर  उसी  ने अरमानों की  कश्ती।

रिस्क जिंदगी की लेकर साथ जिसके चले थे
वही साथ बैठना मेरे आज समझते हैं रिस्की।

'दरिया' कहे भी क्या दुनिया के दस्तूर की
चढ़ा पेंड़ पर जड़े काट लेते हैं  जिसकी।


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