गज़ल आज़ पलकों से पर्दा हटाया हमने।

गज़ल

दुश्मनों को भी दोस्त बनाया हमने
आज़ पलकों से पर्दा हटाया हमने।

गिर गए हैं जिन नज़रों में आज़
कभी नज़रों पे उनको बिठाया हमने।

वक्त के नशे में चूर आईने चिढ़ाते हैं
खुद को दर्पण से दूर भगाया हमने।

उन पर जां लुटाते रह गए हम
जिन्हें खुद से बहुत दूर पाया हमने।

दिल में किसी को जब भी बसाया
ज़ख्मों के सिवा न कुछ पाया हमने।

लोग कहते हैं तू क़िस्मत में नहीं मेरी
हर मोड़ पर क्यूं तुझी को पाया हमने।

उदास दिल से बज़्म को जब भी निहारा
खाली दिल सा, सारा जहां पाया हमने।

रूठी चांदनी से क्या शिकवा करें
जब झूंठा चांद ही दिल में बसाया हमने।


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