आखिर दूरियां इतनी क्यूं बरकरार हैं।

आखिर दूरियां इतनी क्यूं बरकरार हैं
दिन की ख़ुशी है या
रातें बेबसी का शिकार हैं।

आज ये 'दरिया' दिवाना स क्यूं लगता है
नए गम का आगाज़ है या
चढ़ा प्रेम का बुखार है।

खोया खोया से क्यूं आज़ ये चाँद है
लुका-छिपी बादलों से है या
दूजा चाँद सर पे सवार है।

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