वरना रख्खा ही क्या है इश्क के फसाने में।

हार   गया   हूँ  मैं  खुद   को   समझाने में
वरना रख्खा ही क्या है इश्क के फसाने में।

तलब सी हो गयी है मुझे तेरे इस चेहरे से
वरना  हजारों   मरती  हैं   इस  जमाने में।

मुझे   यूं  ही  मोहब्बत   नहीं  हुयी  तुमसे
कोशिश तुमने भी की है दिल को सजाने में।

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