याद तुम्हारी आती है।

रिम झिम बारिस के फुहारों से
आते  जाते  इन  त्योहारों    से
याद तुम्हारी आती है।

नुक्कड़     के    नक्कारों  से
बजते ढोलक और नगारों से
याद. तुम्हारी आती है।

ओलों  की  मारों  से
सर्दी  की लाचारों से
याद तुम्हारी आती है।

जीवन  की  हारों  से
व्यथित  मन मारों से
याद तुम्हारी आती है।

ओठों  की  धारों  से
जिस्म की अंगारो से
याद तुम्हारी आती है।

समर्थन और विरोधों से
विकास की अवरोधों से
याद तुम्हारी आती है।

Comments

Popular posts from this blog

किसी का टाइम पास मत बना देना।

तेरे बिन जिंदगी बसर कैसे हो।

उनका भी इक ख्वाब हैं।