असत्य पर सत्य तो जीत ही जाएगा

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असत्य पर सत्य तो जीत ही जाएगा मगर सत्य में असत्य को कब मिटाओगे  तन का रावण तो जल ही जाएगा मगर मन के रावण को कब तुम जलाओगे। तिनका रक्षा मां की करे कब तलक खुद को राक्षसों से कब तक बचायेंगी  या तो भेजो तुम अपने हनुमान को या बताओ धनुष धारी तुम कब आओगे   

जिंदगी झंड थी झंड ही रह गयी।

जितनी  भी  ख्वाइशें  थी  दरिया
वक्त  की  संदूक  में  बंद रह गयी
जिंदगी झंड थी झंड ही रह गयी।

न थी पहले  न  कोई  बाद आयी
उदासी  जो  दिल में उतर आयी।
मैनें   चाहा  भी  तो   क्या   उसे
उम्रभर ओ अनजान ही रह गयी
जिंदगी झंड थी झंड ही रह गयी।

मान  लूंगा  खुदा  शक्ती तुम्हारी
बन  जाये  जो  इक  बार हमारी
वर्ना  फर्क क्या कब्र और तुझमें
अगरबत्तियां पहले भी जलती थी
और अब भी जलती ही रह गयी
जिंदगी झंड थी झंड ही रह गयी।

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