जिंदगी का बोझ अब
मुझसे ढोया नही जाता
सूख चुके आंशु की अब
रोया नही जाता |
उतर गया भूत सर से
मेरे अपनों का भी
कि अपनों के लिए बीज
बोया नही जाता |
जिंदगी का अरमान तो
सिर्फ तोड़ती पत्थर है
मार कर खुद को खुद
से अब रोया नहीं जाता |
कीचड़ ही कीचड़ हो
जहाँ कमल खिला करते थे
जरुरत से ज्यादा खुद
को डुबोया नही जाता |
मिट चुकी लकीरें
हाथों से किस्मत की कोरोना
कि बार - बार हाथों
को मुझसे धोया नहीं जाता |
वादा था एक उम्र साथ
निभाने का
इतना जल्दी मुझसे
किसी को खोया नहीं जाता |
गर लायक है जिंदगी
जीने की तो जियो दरिया
हर किसी के कंधे पे
सर रख के रोया नहीं जाता |
गर तुम्हारी है तो
तुम्हारी होकर ही रहेगी
हर दर को आंशुओं से
भिगोया नहीं जाता |
“दरिया”
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