रूह-ए-जिस्म


 

रूह  जिस्म  के  आगे  हार ही जाता है

रूह लाने कहां डोलिया कंहार जाता है।


कोई चाहे तुम्हें और चाहता ही रहे

इस ज़माने में कौन दे उपहार जाता है।


ओ कहते हैं कि बदलना प्रकृत का नियम है

इसीलिए तो दिल हर दिल के द्वार जाता है।


मासूम तो हर कोई यहां है दरिया

देखना, कौन छुआ के तलवार जाता है।


वादा रुलाने का कभी किया नहीं किसी ने

फिर भी आंशुओं के आगे हार जाता है।



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