असत्य पर सत्य तो जीत ही जाएगा

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असत्य पर सत्य तो जीत ही जाएगा मगर सत्य में असत्य को कब मिटाओगे  तन का रावण तो जल ही जाएगा मगर मन के रावण को कब तुम जलाओगे। तिनका रक्षा मां की करे कब तलक खुद को राक्षसों से कब तक बचायेंगी  या तो भेजो तुम अपने हनुमान को या बताओ धनुष धारी तुम कब आओगे   

रूठ जाये ये जमाना।


रूठ   जाये  ये  जमाना  तो  कोई  गम  नहीं

बस  ओ  न रूठें,  जिसके  बिना  हम  नहीं 

रूठना  है  तो  रूठ  जाओ, सांसों की तरह

जिसके  रूठने से रहता तन में भी दम नहीं

चोट  दिल को पहुंची, शायद वज़ह हम नहीं

फिर   भी गर  तुम्हें  लगता  है  तो  सज़ा दो

क्योंकि माफ़ करने का आता कोई मौसम नहीं

खुशी मिलती है तुझे मुस्कुराता हुआ देखकर

पर आज से पहले हुयी आंखें इतनी नम नहीं।

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