रूठ जाये ये जमाना।


रूठ   जाये  ये  जमाना  तो  कोई  गम  नहीं

बस  ओ  न रूठें,  जिसके  बिना  हम  नहीं 

रूठना  है  तो  रूठ  जाओ, सांसों की तरह

जिसके  रूठने से रहता तन में भी दम नहीं

चोट  दिल को पहुंची, शायद वज़ह हम नहीं

फिर   भी गर  तुम्हें  लगता  है  तो  सज़ा दो

क्योंकि माफ़ करने का आता कोई मौसम नहीं

खुशी मिलती है तुझे मुस्कुराता हुआ देखकर

पर आज से पहले हुयी आंखें इतनी नम नहीं।

Comments

Popular posts from this blog

किसी का टाइम पास मत बना देना।

तेरे बिन जिंदगी बसर कैसे हो।

उनका भी इक ख्वाब हैं।