गर आंखें इतनी सैतानी न हों।।


 गर   आंखें   इतनी   सैतानी  न  हों

तो मोहब्बत में इतनी परेशानी न हो।


पिछली अदा से ही सहमा हुआ हूँ मैं

अब और अदा कोई तूफानी न हो।


मद  मस्त  पवन  की  मीठी  फुहार

अब बारिश भी कोई मस्तानी न हो।


दौर-ए- जहां में किस किस से प्यार हुआ

अब  और  कोई  प्रेम  कहानी  न  हो।


या मौला मुकम्मल जिंदगी ऐसी कर

इस पर और किसी की मेहरबानी न हो।


कोई टूट न जाये, कोई रूठ न जाये

अब रिश्तों  में  ऐसी  हैवानी  न  हो।

           "दरिया"

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