शायरी।


 गुनहगार  हैं  हम  जो  गुनाहों को बयां करते हैं

समझदार  हैं  ओ  जो  हर  बार गुनाह करते हैं।

मेरी  ख़ामोशी  और  तनहाइयाँ  मुझे  सताती हैं

वाह रे मुहब्बत  तू कितनी अदब से पेस आती है।

         

Comments

Unknown said…
Jisko barbad krna hota hai wo adb se hi pes ate h
जी बिल्कुल सही है।

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