असत्य पर सत्य तो जीत ही जाएगा

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असत्य पर सत्य तो जीत ही जाएगा मगर सत्य में असत्य को कब मिटाओगे  तन का रावण तो जल ही जाएगा मगर मन के रावण को कब तुम जलाओगे। तिनका रक्षा मां की करे कब तलक खुद को राक्षसों से कब तक बचायेंगी  या तो भेजो तुम अपने हनुमान को या बताओ धनुष धारी तुम कब आओगे   

जीवन का हर हिस्सा बंजर रहा।


 मुसीबतों के साये में लंगर रहा

जीवन का हर हिस्सा बंजर रहा।

कोई कितना यकीं कर ले दरिया
तू घोंपता पीठ पीछे खंजर रहा।

मंजिल -ए-इश्क़ तो जिस्म ही है
हवस का भूख और हंगर रहा।

डटा रहा मैं रिश्तों के कुरुछेत्र में
पाया टूटा मेरा अस्थि पंजर रहा।

कोशिश तो बहुत की तुझे पाने की
किस्मत का पहिया सदा पंचर रहा।

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