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Showing posts from September, 2019
पहली मोहब्बत।
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पहली मोहब्बत नयनों का पहली बार मिलना फिर मिलकर बिछड़ना हथेलियों का बालों में मचलना जुल्फों का खुद से बिखरना। आसान नहीं होता। साथ मे धीरे - धीरे चलना फिर चुपके से छुप जाना अचानक से सामने आकर फिर गले से लिपट जाना। आसान नहीं होता। जाते - जाते बाय कर जाना Byke कैम्पस में भूूूल जाना रात भर बाय को गुनगुनाना सुबह इंतजार में लग जाना। आसान नहीं होता। पंखुड़ियों को पकड़ कर हिलाना छत की बालकनी मे...
शबनमी ओंठ अंगारे बरसाने लगे।
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छुप - छुप कर बतियाता ही रहता हूँ मैं लगता है बगावत पे उतर आया हूँ मैं। मेरे कर्मो का आईना देखो 'दरिया' अपने ही विनाश पर उतर आया हूँ मैं। नजदीकियां बढ़ी थी विषम परिस्थिति में हालात बदलते , औकात में उतर आया हूँ मैं। सम्भाल कैसे पाओगे ए - ख़ुदा हमें जब गिरने पे ही उतर आया हूँ मैं। हो सकता है कचहरी लग जाये कल खिलाफ़ लिखने पे जो उतर आया हूँ मैं। अब तो तरक्की ही पक्की है साहब जब चाटुकारिता...
हिंदी से हिन्दू- हिंदुस्तान है।
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सुबह भी तुझसे होती तुझ संग गुजरती शाम है हे मेरी मातृ जननी तुझे शत - शत प्रणाम है। सांसों में है तू बसी तुझ संग ही जुबान है यूं ही तू फूले - फले तुझ में ही हिंदुस्तान है। तेरी उपस्थिति से ही मेरी लेखनी का सम्मान है मिसाल दूं क्या मैं जब तू ही विधा की चटटान है। लिख गये भारतेन्दु जी शुक्ल जी का भी मान है नारा इतिहास का यही हिंदी से हिन्दू-हिंदुस्तान है।
एक घटना जिसने देश को झकझोर का रख दिया था।
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ओडिशा के एक अस्पताल की ह्रदयविदारक घटना जिसमें दीनू मांझी नामक आदिवासी की पत्नीक tv के कारण मृत्यू हो जाती है और वह अपनी पत्नी को कंधों पर उठाकर चल देता है और 12 km तक जाता है,इसके बाद ही उसको एम्बुलेंस मुहैया करायी जाती है जो हमारे देश की अव्यवस्था का आईना पेश करती है।जिस घटना ने पूरे देश को झकझोर के रख दिया। ओ लाश नहीं आखिरी आस थी लाचार व्यवस्था की जिंदा अहसास थी मजबूत कंधे की ओ कहानी है कांपते मेरे रूह की जवानी है हर सख्स के लवों की आवाज़ है सरेआम मरती इंसानियत आज है बहुतों ने देखा बहुतों ने सोंचा होगा हर किसी ने व्यवस्था को कोसा होगा तस्वीर देख कर होंगे हम जिंदा नहीं इस पर इंसानियत होती शर्मिंदा नहीं फुट -फुट कर रोया किया कितना गिला होगा जनाजा लेकर जब प्रियतम का चला होगा। कितनी भयावह दुःखद रही ओ घड़ी होगी जब शौहर के कंधे पर चली पगडंडी होगी। यह तस्वीर क्या बताने के लिए काफी नहीं कि हम ज़मीर बेंचने में करते न इंसाफी नहीं आ...
पत्ता कट गया तो क्या हुआ।।
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दबा ली न उंगलियां दांतों तले कट गया तो क्या हुआ।। पहन कर नहीं चले थे हेलमेट चालान कट गया तो क्या हुआ।। कहे थे कि न लड़ाओ पतंग डोर कट गया तो क्या हुआ।। कहा था इसरो विक्रम साथ रहना संपर्क कट गया तो क्या हुआ।। त्योहार था अपना बकरीद का बकरा कट गया तो क्या हुआ।। उम्र तड़प उठी जब जाने को टिकट कट गया तो क्या हुआ।। निभा ली न सारी जिम्मेदारियां चढा फट गया तो क्या हुआ।। फॉल इन लव में मज़ा तो आया जेब कट गया तो क्या हुआ।। माल ही जब गलत बना दिया पगार कट गया तो क्या हुआ।। जवान बीबी को छोड़ प्रदेश गये पत्ता कट गया तो क्या हुआ।।
ऐसा मंजर हो गया था।
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तुम सोंच नहीं सकते दरिया कि ओ कितना करीब हो गया पैंतरे ही ऐसे लगाता था ओ कि उसका सफल तरक़ीब हो गया । था चार दिनों का अनुभव मात्र चालीस दिनों को मात देता कुछ इस कदर संभाला उसने कि हर विभाग का नसीब हो गया । रख सकते हो कब तक दरिया तुम गुमराह करके किसी को तेरे काम का लहज़ा बता रहा था जाने का वक्त कितना करीब हो गया उसके प्रवेश मात्र से ही ऐसा मंजर हो गया था हर किसी के लिये हर कोई चुभता खंजर हो गया था। माना कि तुम कहना चाहते हो किसी की चुगली नहीं कि उसने सच्चाई ये है कि कोई बचा नहीं जिसके पीछे उंगली नहीं कि उसने यूं तो छा गये थे गुरु आसमां में बादल की तरह पर बहते देर न लगी आंसुओं संग काज़ल की तर...
नयना तुम्हारे।
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टूट कर बिखरने लगता हूँ संभालते हैं कंगना तुम्हारे पी लून मैं कितना भी सनम प्यास बुझाते हैं नयना तुम्हारे। रूठ कर चल देता हूँ बुला लेते हैं अरमां तुम्हारे गिर जांऊ किसी की नजर में उठा लेते हैं नयना तुम्हारे। सागर की बात क्या करूँ 'दरिया' हैं सावन के सहारे डूबी नहीं हैं कस्तियां वहां जहां केंवट हों नयना तुम्हारे। यूं तो भंवरे होँसियार बहुत हैं चूस लिए हैं रस यौवन के सारे पर बच न सके आज तलक तीर चलाये हों जब नयना तुम्हारे।
Happy Teacher's Day.
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महकती धरती जिसके दम पर और जगमाता आसमान है चुनी यह राह है जिसने उनको सौ-सौ बार प्रणाम है मौजूद हजार राहें हैं यूं तो जीवन निर्वाह खातिर फिर भी उठा लिया वीड़ा समाज के उत्थान खातिर। दम घुटता है जब संस्कारों का बनकर प्रचार आता है गुरु बेशक कभी लौ नहीं बनता मगर तेल का क़िरदार निभाता है गुरु। पेंड़ बनकर खड़ा नहीं होता मगर बीज का पोषण करता है गुरु जाता नहीं चल कर कहीं मगर हर राह दिखा देता है गुरु। बुझते दीपक में तेल बनकर डूबते जीवन में मेल बनकर भटके राही के जीवन मे चलती ट्रेन बनकर आते हैं गुरु सभ्यता को संभाल कर रखना संस्कारों को जीवित रखना मचलते फूल से बच्चों को बनाकर इन्शान रखना आसान नहीं होता।