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Showing posts from September, 2020
रूठ जाये ये जमाना।
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रूठ जाये ये जमाना तो कोई गम नहीं बस ओ न रूठें, जिसके बिना हम नहीं रूठना है तो रूठ जाओ, सांसों की तरह जिसके रूठने से रहता तन में भी दम नहीं चोट दिल को पहुंची, शायद वज़ह हम नहीं फिर भी गर तुम्हें लगता है तो सज़ा दो क्योंकि माफ़ करने का आता कोई मौसम नहीं खुशी मिलती है तुझे मुस्कुराता हुआ देखकर पर आज से पहले हुयी आंखें इतनी नम नहीं।
ग़लतफ़हमी भाग-3 ( विरह के दिन)
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देखो न , हर कोई आ गया मिलने, कौन रूठता नहीं है पर इसका मतलब ये थोड़ी होता है कि बीच राह में साथ छोड़ कर चला जाये ओ भी सिर्फ़ ग़लतफ़हमी की वजह से। रात भी आई और मिलकर चली गयी, आंखों से आँख मिलाते हुए टिमटिमाते तारे भी आये, बालों को सजाने वाली हवा भी आकर चली गयी। जानती हो आज सुबह जब मैं उठा तो मिलने के लिये आपका भाई सूरज भी आया था , किरनों से पैरों को छुआ और माथे को चूम कर चला गया। ओ विस्वास दिला कर गया है कि मैं आ गया तो एक दिन उसे भी लेकर आऊंगा। तुम दिल छोटा मत करना। जानती हो पन्द्रह दिन हो गया था ओ चिड़िया नहीं आयी थी जिसकी पूंछ को तुमने हाथों से छू कर गुलाबी कर दिया था, आज उड़ते हुये आयी और बाहर बालकनी में जहाँ मैं बैठा था पास में ही आकर बैठ गयी। पहले तो बात नहीं करती थी लेकिन आज पूंछ रही थी कि क्या बात है आज बहुत उदास हो । हमने तो ये कहते हुए बात टाल दिया कि बताओ तुम कैसी हो, और इतने दिन तक कहाँ रही। कुछ दाने चुगी और हथेली चूम कर चली गयी, जाते जाते कह रही थी की हमेशा हंसते रहा करो, आप हंसते हुए अच्छे लगते हो। हमने भी गर्दन हिला कर हामी भर ली। चाँद भी आया था देर रात को , पर पता नहीं क्...
ग़लतफहमी भाग 2
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आज चार दिन हो गये, आशी ने बात नहीं की। ओ बहुत जिद्दी है ,हो सकता है कि ओ फिर कभी भी बात न करे क्योंकि उसकी कथनी और करनी में बहुत फर्क नहीं रहता है। पता नहीं कैसे रहती होगी। इतना आसान तो नहीं है बिरह की आग को ठंढा करना। लेकिन हर किसी का अपना अलग कंट्रोलिंग पावर होता है । हो सकता है कि ओ उसे अच्छे से मैनेज कर ले। आशु का जो हाल है ओ तो मासा अल्ला है। सबकुछ जानते हुए भी आशु खुद को नहीं संभाल पाता है। ओ इतना टूट चुका है कि खुद से भी बात नहीं करना चाहता है। जहाँ देखो वहां मु लटकाये बैठा रहता है। उसके हालात को देख कर नहीं लगता कि ओ ज्यादा दिन तक काम कर पायेगा। पागलो जैसी स्थिति होती जा रही है। आप खुल के एक बार रो लो तो शायद भार कुछ कम हो जाये लेकिन छुप - छुप के रोना एक दम नासूर की तरह होता जो कभी ठीक नहीं होता। उसके दिल-ओ- दिमाग मे सिर्फ एक ही बात घूम रही थी कि आखिर उसका प्यार इतना कमजोर कैसे हो गया कि एक अनजान के कमेंट मात्र से ही सब कुछ खत्म हो गया। कोई भी हो बातें समझने की कोशिश करता है लेकिन आशी की सिर्फ एक जिद थी कि ओ अब बात नहीं करेगी।इतनी नफरत हो गयी आशी को आशु से की ओ एक म...
पर तुम लौट के मत आना।
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हज़ार परेशानियां दे जाना पर तुम लौट के मत आना। गर मुझसे पहले ओ है तो तुम मेरी जान भी ले जाना पर तुम लौट के मत आना। इतना छुपा के कहां रखूं दिल के अरमान ले जाना पर तुम लौट के मत आना। उम्र भर मैं आँशु बहाऊँ मुझ पे तरस मत खाना तुम लौट के मत आना। चंदन, चुनरी, गले लगाना पायल की छनक भुलाना पर तुम लौट के मत आना। ओ सपनों का एक कमरा जहां था तुझे अकेली आना तुम उसे भी भूल जाना पर तुम लौट के मत आना। मैसेज, कॉल सब कुछ छोड़ो तुम दर्शन देने भी मत आना पर तुम लौट के मत आना। गर चाहो की मैं सुकूं से रहूं मत यादों के दिये जलाना पर तुम लौट के मत आना। जानती हो, अच्छा सुनो का रिप्लाई मत देकर जाना अच्छा सुनो, अब तुम लौट के मत आना।
ग़लतफ़हमी। कभी कभी ऐसा होता है कि गलतफहमी हमारे ऊपर इतना हॉबी हो जाती है कि हमारी सारी समझदारी उसके सामने घुटने टेक देती है।
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Haa...y...eeee, कैसे हो आप, hello.....मैं ठीक हूँ आप बताओ कैसे हो, मैं भी ठीक हूँ, क्या हुआ...........?, No reply, अरे बोलो भी कुछ..................No reply, उसके बार बार आग्रह करने पर भी आशु कोई रिप्लाई नहीं दे रहा था। पहली बार स्क्रीन पर देख कर ओ इतना कंफ्यूज था कि आखिर करें क्या, उसे जी भर के देख लें या बातें कर लें । और सच्चाई ये थी की ओ देखने में एकदम मगन था इसलिए आशी की hello, hii उसको सुनाई नहीं दे रही थी। मगन भी क्यूं न हो काफ़ी दिनों से आशु आग्रह कर रहा था कि आपको एक नज़र देखना चाहता हूं । लंबे अर्शे के बाद ओ बात मान गयी थी और आज वीडियो कॉल की थी। आशु मन ही मन बहुत खुश था कि चलो उसकी मुराद पूरी हो गयी और गॉड को भी धन्यवाद दे रहा था जो उसने ये अवसर दिया। लेकिन किस्मत को शायद कुछ और ही मंजूर था। भूकंप की तरह एक ऑफिस पार्टनर आफिस में प्रवेश करता है और एकदम funny मूड में बोलता है, "अरे ये तो बहुत अच्छी लग रही है ,तुम तो कह रहे थे कि अच्छी नहीं है"। उसने तो सिर्फ एक लाइन मज़ाक में बोला जो उसके मज़ाक करने की आदत थी। आदत उसकी ऐसी है कि कोई भी कॉल पे बात कर रहा हो तो ओ कुछ न कु...
रूह-ए-जिस्म
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रूह जिस्म के आगे हार ही जाता है रूह लाने कहां डोलिया कंहार जाता है। कोई चाहे तुम्हें और चाहता ही रहे इस ज़माने में कौन दे उपहार जाता है। ओ कहते हैं कि बदलना प्रकृत का नियम है इसीलिए तो दिल हर दिल के द्वार जाता है। मासूम तो हर कोई यहां है दरिया देखना, कौन छुआ के तलवार जाता है। वादा रुलाने का कभी किया नहीं किसी ने फिर भी आंशुओं के आगे हार जाता है।
सांवलापन
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ऐसा नहीं कि ओ खूबसूरत नहीं थी लेकिन किसकी नज़र में थी इसका अंदाजा लगा पाना बहुत मुश्किल था शायद उसके लिए जो उसी की तरह बदसूरत हों या फिर उसके लिये जो उससे भी ज्यादा हों।हालांकि किसी की तारीफ करना तो कोई गुनाह नहीं है लेकिन किसी को बदसूरत कहना ये भी अपने अधिकार क्षेत्र में नहीं आता। नाम तो खैर बहुत ही खूबसूरत था लेकिन जो चेहरे की ललक थी ओ कुछ और ही बयां कर रही थी लेकिन अगर आप ये कहें कि आंख के अंधे, नाम नयन सुख तो कोई बुरा नही है। नाम तो रोशनी है लेकिन चेहरा, सांवला तो नहीं कहेंगे क्योंकि इसमें सांवला भी अपनी बेज्जती महसूस कर सकता है लेकिन हां उसे आप काला जरूर कह सकते हैं। अभी उम्र तो कोई चौदह से पंद्रह साल होगी लेकिन ओ बड़ी होने के लिए इतनी लालायित है इसका अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है जैसे आपके सामने एक कटोरे में अच्छी सी खीर बना के गरमागरम रख दिया जाए और आप खाने के उतावले हो जायें। लेकिन प्रकृत का अपना नियम है जो सतत होता है उसमें किसी और का ज़ोर नहीं चलता है। वैसे तो कोई कमी नहीं है बस चेहरे पे मोटे मोटे दाने और ओठो की फटी हुयी लाइने थोड़ा सा चेरे पे सन्नाटा लाने को आतुर थी।...
जब भी मिलो तुम।
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जब भी तुम मिलो रोम रोम शिहर जाये गुजारिस इतनी है बस ओ पल ही ठहर जाये। जब भी तुम मिलो दरिया में लहर आये इस कदर भीगो तुम नज़र तुम पे ठहर जाये। जब भी मिलो तुम जुल्फें तेरी लह-रा-यें चाँद बादल और तुम कहर और कहर ढायें। जब भी मिलो तुम मेरे गांव की नहर आये दौड़े जो तितली को दुपट्टा ढक चेहरे को जाये। जब भी मिलो तुम ऐसा मंजर हो जाये भले नयन नीर बहाये पर मन मंद-मंद मुस्काये। जब भी मिलो तुम मेरा मन शहर को जाये सन्नाटा दार एक कमरा हो और हम तर बतर हो जायें। जब भी मिलो तुम चेहरा चंदन हो जाये आंखें हों मधुशाला गुलाबी चुम्बन हो जाये।
तिल – तिल मरने से तो अच्छा है/
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गज़ल तिल – तिल मरने से तो अच्छा है क्यूँ अभी तज देते अपने प्राण नहीं / भरोसा नहीं रह गया गर बातों का क्यूँ सीना चीर के दिखाते प्रमाण नहीं / जब जमीर बेंच ही चुके हो दरिया क्यूँ करते हर किसी को प्रणाम नहीं / जब जयचंद ही जयचंद दिखने लगें क्यूँ बनते तुम पृथ्वीराज चौहाण नहीं / अब और लड़ा नहीं जाता खुद से खुदा क्यूँ उठाते मेरे लिए धनुष बाण नहीं / दरिया