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Showing posts from February, 2019
ये रोशनी अब मेरे द्वार चल ||
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ये रोशनी अब मेरे द्वार चल अंधकार में डूबी है जिंदगी थोड़ा उस पर भी विचार कर ये रोशनी ................................ मेरे दिल में सुलगती उसकी यादें हैं उस पर खड़ी अब दीवार कर | ये रोशनी .................................... कुछ तश्वीर आंशुओं से भिगोई है , कुछ जख्मों को दिल में संजोया है | रोशनी अपना तेज प्रताप कर , जला कर इसको अब राख कर | ऊब गया हूँ मै इस प्रेम जाल से , माया से अब मुक्ति के द्वार चल | ये रोशनी.................................. रामानुज ‘दरिया’
उठ चल दो कदम चार
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उठ चल दो कदम चार हरगिज़ तू न मान लेना हर भर तू हौंसलों में उड़ान जाना है तुझे गगन के पार उठ चल ........................ वक्त भी तेरा होगा और कायनात भी तेरी ठान ले तू इस बार पहन परिश्रम का हार | उठ चल ...................... दूर मंजिल नहीं तुझसे चूम ले सफलता का मुकाम खा कसम खुद से इस बार जाना है तुझे गगन के पार | उठ चल ............................. उठा मेहनत का हथियार बदल दे हर वक्त की मार कोई बाँध टिक नहीं सकता बन जा तू नदिया की धार | उठ चल ............................ पहचान तू खुद को एक बार जुनून ले दिल में उतार हर शब्द तेरा quotation होगा रच नया इतिहास इस बार | उठ चल दो ......................... रामानुज ‘दरिया ‘
नारी उलझन नारी ही समाधान है ||
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नारी के बारे में कुछ भी कह पाना मुस्किल है क्योंकि नारी का जीवन ही अपने आप में अद्भुत है फिर भी एक छोटी सी कोशिस ........................................................................ नारी वही जो नार को सताती है , नारी वही जो जीवन नरक बनाती है | नारी में दुर्गा का वास है , नारी ही विश्वासघात है | नारी इज्ज़त नारी ही सम्मान है , नारी गीता नारी कुरान है | नारी हिन्दू को भी बना देती मुसलमान है || नारी धर्म नारी ही लज्जा है , जिंदगी का श्रंगार नारी साज़ सज्ज़ा है | नारी मानव के लिए भगवान का वरदान है , नारी उलझन नारी ही समाधान है | नारी नरत्व की खान है , नारी पुरुस के समान है | नारी सुबह की पहली किरण है , नारी जिंदगी की महकती शाम है | हर तरफ नारी का नाम है , नारी ही समाज में बदनाम है | नारी जन्म दाता है , नारी भाग्य बिधाता है | नारी अर्चन नारी बंदन , नारी धरा की पहचान है | नारी बिन जीवन सूना समसान है || नारी सृस्टी नारी विनाश है , नारी धरती पर ही नरक वाश है | नारी त्याग नारी तपस्या है , नारी का ही एक रूप वैश्या है | नारी मंथरा,कैके...
ये जिंदगी तुझसे अब आस नहीं कोई |
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ग़ज़ल ये जिंदगी तुझसे, अब आस नहीं कोई | मेरे सर पे धूप रहने दे , न चहिये छांव अब कोई || सताने लगे हैं , ये उजाले भी मुझे | अंधेरों में न रही , औकात अब कोई || ये जिंदगी ..................... नफ़रते हुश्न का जलवा तो देखो टूट कर आइना भी कहता है “ये मनहूस चेहरा” तुझे कितना बरदास करे कोई || ये जिंदगी ...................... रामानुज “दरिया”
दो घूंट जहर की बस मुझे पिला देना ||
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ग़ज़ल दो घूंट जहर की बस मुझे पिला देना जिंदगी-ए–सफ़र की रोशनी मिटा देना जिंदगी जहन्नुम से बद्तर बना देगी नफ़रत किसी जिंदगी में मिला देना दो घूंट .......................................... हर रिश्ते को मिटाने की ताकत है बस गलतफ़हमी रिश्तों में सज़ा देना दो घूंट ......................................... बेंड़ीयां ज़माने की जकड़ नहीं सकती मोहब्बत किसी की दिल में बसा लेना दो घूंट ........................................... रामानुज ‘दरिया
तेरे सारे किरदार बदल गए |
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न जाने कितने बदल गए हवाओं ने बेरुखी की सारे मौसम बदल गए | तख्त-ए –ताज बदल गए दिलों के सरताज बदल गए जब मोहब्बत हमने की सनम के अंदाज बदल गए | सादगी में जीने क्या लगे उनके तो atitude बढ़ने लगे जब तेवर हमने दिखाए सतरंज के सब चाल बदल गए | प्यार के इम्तहां में फेल हो गए अस्कों के भी कई खेल हो गए अंदर थे तेरी मोहब्बत बनकर बाहर आते ही दरिया से मेल हो गए| पूँछ लो आज दिल से मेरे कितनी मोहब्बत है तेरे लिए हाल-ए –दिल क्या बयाँ किया तेरे सारे किरदार बदल गए | हवाओं ने बेरुखी की सारे मौसम बदल गए || रामानुज ‘दरिया ‘
बारिस आकर तू ,चांदनी न बेकार कर ||
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पतझड़ न परेशान कर गिर रहे हैं एक-एक कर पत्तों की बेबसी पर अब न विचार कर | उम्र की न सीमा है टूट कर न जीना है , छोड़ साख को अब न सलाम कर | घना अँधेरा भी है चाँद का पहेरा भी है, बारिश आकर तू चांदनी न बेकार कर|| महंगाई का दौर है समेट चाहत को ले, खड़े बाजार में होकर बेवजह न भाव कर | क्यों दुशमनी निभाने लगे वादा दोस्ती का कर , खंजर सीने में उतार दे अब न पीछे से वार कर || प्रेम स्वाद के कई , चख कर ऐतबार कर | खुद से है तो सही औरों से , तो और सही , समभाल कर रख इसे सरेआम न बदनाम कर || रामानुज ‘दरिया
जब बसंत के आगमन होत हैं ||
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संत की भंग होत तपस्या जब बसंत के आगमन होत हैं महक उठे गोरी के अंग –अंग जब पवन मंद- मंद चलत हैं साजन- सजनी रहें संग-संग जब सुमन को भंवर तंग करत हैं पांव में पायल बाजे छना-छन जब नयनों से तीर दना-दन चलत हैं आती है गोरी जब सामने मेरे जिया मोरा धका-धक करत है रसालों का योवन चूस लिए तब भंवरे कैसे भना-भन करत हैं बगिया में कोयल कूँ –कूँ करे जब अमुआ सब बौरे लगत हैं किसानन कय जियरा गद-गद होय जब गेहुवन में गलुआ लगत हैं मनवा मां सबके पीर उठत हैं जब बसंत के आगमन होत हैं |
ये दरिया यूं ही चुप बैठता नहीं।
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ये दरिया यूं ही चुप बैठता नहीं उखाड़ फेंकता है जो सिस्टम बदलता नहीं। आंधी हो या तूफ़ान चाहे आग बरसती रहे मिटा देगा हर उस चीज को जो कसौटी पर खरा उतरता नहीं ये दरिया यूं....... पत्थर का जिगरा है इसे समझे कोई हलुवा नहीं चीन हो या पाकिस्तान गर डांट दे हिंदुस्तान पैंट गीली न हो जाये तो समझो कोई जलवा नहीं। ये दरिया....... फुदक-फुदक कर इक-इक तिनका रखता है फूंक न दे पाकिस्तान को ओ धरती-ए-हिन्द का बेटा नहीं ये दरिया यूं......... रामानुज "दरिया"
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एक-एक कतरे के बदले चार-चार जल्लाद चाहिए अब मुझे हिंसाब चाहिए।। धरा हुयी जिससे लाल जिहादियों की किताब चाहिए अब मुझे हिंसाब चाहिए। तड़पती माँ के आंसुओं का बिलखते शहीद के बपुओं का अब मुझे हिंसाब चाहिए। इंच-इंच इक -इक सूत का उतरे हर मंगल सूत्र का अब मुझे हिंसाब चाहिए। चूड़ियों के चूर-चूर का पूंछे हुए सिंदूर का अब मुझे हिंसाब चाहिए। चुन-चुन के लाओ उसके अंत तक जाओ उसकी लहू से धरा लाल चाहिए अब मुझे हिंसाब चाहिए। संविधान को बदल डालो गला उसका काट डालो बोटियां कुत्तों को खिलाओ कुर्बान शहीदों का सम्मान चाहिए अब मुझे हिंसाब चाहिए।। रामानुज "दरिया"
आज सपने में गाँव देखा।।
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आज सपने में गाँव देखा गुजरा बचपन जहाँ से पीपल की ओ छाँव देखा। खेले थे जहाँ लुका- छिपि का खेल चोर - पुलिस में हो जाती थी जेल गोलू पिंटु भोलू के संग पानी में चलाते, कागज़ की नाँव देखा।। आज सपने में.......... फेल-पास की चर्चा रहती थी गड्डी-तास की जहाँ सजती थी बात-बात पर करते कौओं की काँव-काँव देखा। आज सपनें में............. सिंकती रोटियां थी जिस पर रख्खी चूल्हे पर ताव देखा जिम्मेदारियों का बोझा लेकर धूप में चलते पिताजी के पाँव देखा।। आज सपने में................ रामानुज "दरिया"
जाने क्यूं माँ नहीं सोती है।।
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छुप-छुप कर बहुत रोती है जाने क्यूं माँ नही सोती है रुक -रुक कर जो चलती है दर्द धड़कन की जान लेती है समझती है हर अल्फाज़ को पढ़ती न कभी पोथी है जाने क्यूं माँ नही सोती है कुत्ते पालने का चलन क्या हुआ तुलसी के नीचे जलती नही ज्योती है बुढ़ापा इस क़दर न गवांरा है सजती अनाथालयी कोठी है जाने क्यूं.......…. बूंद -बूंद दरिया की पहचान लेती है बच्चों के लिए माँ आसमान होती उतरती चाँदनी है आंगन में नसीब माँ की जब गोदी होती है रामनुज "दरिया"
आने की ख़ुशी या जाने का गम लिख दूं।।
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तू ही बता मै तुझे ज्यादा या कम लिख दूं आने की ख़ुशी या जाने का गम लिख दूँ। लिखने को तो मैं ये सारा जहां लिख दूं पर बगैर तेरे मैं खुद का वजूद कहां लिख दूं। मेरे दिल के आईने में झांक ले तस्वीर अपनी इससे बढ़कर मै कौन सी जागीर लिख दूं। ना कुछ पास बचा जिंदगी की हाजिरी में सोंचता हूँ साँसों का सफर आखिरी लिख दूं। " दरिया "
रे भैया के सरहद पर जेइ
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गीत रे भैया के सरहद पे जाइ रे भैया के::::::::;;;;;:::::: भ्र्स्ट तंत्र अब करे तांडव दहेज़ रहे है लुभाई शिशक शिशक के बिटिया रोये अब के हमका पढ़ाई । रे भैया के :::::::;;;;;;;:::::::::::;; चैन की निंदिया जौ हम सोई सेना की देन है भाई कुछ तो नेता निचे गिरिगे रहें सेना पर ब्लेम लगाई रे भैया::::::::::::::;:;;;;:: चीख चीख के धरती रोये एम्बर फ़टी फ़टी जाई पेट पकड़ के मई जी रौये अब के लाज़ बचाई। रे भैया:::::::::: रामानुज दरिया
नारी जीवन
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छनकती पायल में तुम हो। कूकती कोयल में तुम हो। नैनो के काजल में तुम हो। माँ के आँचल में तुम हो। धड़कते सीने में तुम हो। महकती साँसों में तुम हो। मेरे खवाबो में तूम हो। मेरी बातो में तुम हो। मेरी जजबातों में तुम हो। जो तुम हो तो दुनिया है। नहीं, रेगिस्तान है दुनिया। मेरी समसान है दुनिया। अहंकार है दुनिया। मेरी अंधकार है दुनिया। विस्वास्घात है दुनिया।। दिल में आघात है दुनिया। जब तुम नही हो तो। मेरे किस्काम की दुनिया। रामानुज 'दरिया'
कहा था लौट कर आऊंगा मैं।।
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सूखे सागर को बूंद दे जाऊंगा ख़्वाब को हकीक़त बनाऊंगा मैं ये ताज,काज और साज तरसेंगे फ़लक तक की सैर कराऊंगा मैं कहा था लौट कर आऊंगा मैं।। चमन ख़ुशबू मांगेगा आसमां धरती निहारेगा फिजायें इतनी नशीली होंगी मैखाना भी नयन सिधारेगा खूबी ऐसी देकर जाऊंगा मैं कहा था लौट कर आऊंगा मैं।। थी अपनी भी चाहत हकीकत का नजारा हो कदम निकले जो घर से सारा जमाना हमारा हो मांगे ऑटोग्राफ तो खुद को भूल जाऊंगा मैं कहा था लौट कर आऊंगा मैं।। रामनुज 'दरिया"