मेरी सोंच उस आधुनिकता की भेंट नहीं चढ़ना चाहती थी जिसमें एक लड़की के बहुत से बॉयफ्रेंड हुआ करते हैं और ओ जब जिससे चाहे उससे बात करे , जहां जिसके साथ चाहे घूमे टहले , ओ आधी रात को आये या दोपहर को , मैं आशिक हूँ तो आशिक की तरह रहूं, उसे रोकने टोकने का मुझे कोई अधिकार न रहे। अगर इसे आधुनिकता और आधुनिकता में छुपी अय्यासी को ही आज़ादी कहते हैं तो मुझे सख़्त नफ़रत है उस आज़ादी से और उसका अनुसरण करने वाले आज़ाद पंछी से। इतने दिन बाद भी कोई दिन नहीं बीतता जो उसकी यादों के बगैर गुजर जाये क्योंकि मैंने उसे चाहा है दिल की अटूट गहराई से , जिस्म की आंच से भी उसे बचा के रखा है।नफ़रतों के साये तक न पड़ने दिया है उस पर।जिंदगी की एक अनमोल धरोहर की तरह मैने उसे छुपा के रखा है उसे अपने दिल के किसी कोने में जहां सिर्फ और सिर्फ ओ रहती है उसके सिवा कोई नहीं। अपने रिस्ते के धागे और उसके अदाओं की मोती की जो प्रेम रूपी माला बनाई है उसकी इकलौती वारिस और मालिकाना हक भी सिर्फ वही रखती है। निरंतर बहते नदी की धारा की तरह एक प्रेम का प्रवाह दूंगा उसे मैं। भले इसके लिए मुझे कितना भी कुंठित क्यों न होना पड़े। हां हां...